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मदार के रेशों से बना पारम्परिक जगमगाता दीप |
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मदार का उड़ता बीज flying seed Madar |
Sometimes Traveller moves Ahead Things join with them...
मेरे इस सिद्धांत के अनुसार मुझे राह में उड़ते हुए मदार के बीज से रू-ब-रू होने का मौका मिला। मदार का
वानस्पतिक नाम कालोट्रोपिस गीगंतेय (calotropis
gigantea) है। इसे
स्थानीय भाषा में आक, अर्क या अकौआ भी कहते हैं। आयुर्वेद
शास्त्र में मदार के पौधे के बहुत से लाभप्रद औषधि गुणों का वर्णन मिलता है।
लिहाज़ा मदार के बीज का यूँ उड़ना महज बीज के प्रकीर्णन की एक पद्धति है । यह प्रकीर्णन जून-जुलाई
माह में होता है। मदार का बीज भी अन्य बीजों की तरह फल के अन्दर विकसित होता है। मदार के फल के अन्दर की संरचना बहुत ही
रचनात्मक तथा साथ ही अद्भुत होती है, जो मन को मंत्र मुग्ध कर देने वाली होती है। मदार के फल के अन्दर विकसित होती बीजों की बेहतर संरचना को देखने में ऐसा प्रतीत होता है , कि मानों किसी सर्प का शरीर हो। अगर यह फल अपनी विकसित होने की अवस्था में है, तो यह फल बाहर से हरा होता है। इसके बीज भी हरे होते है परन्तु जब यह पूर्णतया विकसित हो जाता है तब इसके फल और बीज दोनों का रंग-रूप बदल जाता है और ये हल्के भूरे रंग के एवं कठोर हो जाते हैं। फल को पौधे से तोड़ने पर सफ़ेद द्रव
निकलता है, जो कि ज़हरीला होता है। इस आधार पर इस पौधे को ज़हरीला पौधा भी
माना जाता है। इस फल में केवल एक ही बीज नहीं होता बल्कि इसमें तो बीजों का एक जाल सा बना होता है। इस जाल में अनगिनत संख्या में कई बीज होते
हैं, जो आपस में एक दूसरों से चिपके होते हैं। हर एक बीज मे सफेद रेशों युक्त संरचना जुड़ी रहती है। यह
रेशे प्रकीर्णित बीज को उड़ने मे सहायता
प्रदान करते हैं। बीज के इस गुणधर्म के आधार पर इसे उड़ता हुआ बीज ( flying Seed ) कहना सर्वसंगत एवं सर्वमान्य है। बीज को उड़ने मे सहायता देने वाले इसके सफेद और मुलायम रेशे कपास के पौधे से प्राप्त होने वाली रूई के समतुल्य होते हैं । अध्ययन से ज्ञात होता है कि उच्च गुणवत्ता वाली रूई मदार के सामान्य बीज से प्राप्त होने वाले रेशों की तरह चिकनी और बेहद मुलायम होती है।
मेरे अन्वेषण एवं अनुप्रयोगों के अनुसार मदार के बीज से प्राप्त होने वाले इन रेशों का प्रयोग हम कपास से प्राप्त होने वाली रूई के समतुल्य एवं इसके विकल्प के रूप में कर सकते हैं। इस प्रकार इन रेशों का प्रयोग दीयों के लिए बाती निर्माण में किया जा सकता है। मैंने
इन रेशों से निर्मित बातियों का प्रयोग, भारतीयों के दीयों के त्यौहार दीपावली में बहुत से दीयों को जलाने में किया। इसके परिणाम लाभप्रद प्राप्त होते हैं। यह दीये किफ़ायती हैं। इन दीयों से वातावरण को कोई हानि
भी नहीं पहुँचती है। यह दीये अधिक प्रकाश करने के साथ ही रूई के दीयों की अपेक्षा अधिक समय तक भी प्रकाश देते हैं। चूंकि ये रेशे मुलायम होते हैं इस कारण इन रेशों का बेहतरीन प्रयोग रूई की भाँति कपड़ा उद्योग में कपड़ों के उत्पादन में वृहद
स्तर में किया जा सकता है। मदार के सूखे बीज में तेल के गुणधर्म एवं साक्ष्य मिलते हैं। इस आधार पर यह तथ्य सामने आता है कि मदार के सूखे बीजों से तेल का उत्पादन किया जा सकता है। इस तेल का भी उपयोग अन्य तेलों की
तर्ज़ पर विभिन्न आवश्कताओं में किया जा सकता है। मैंने मदार के बीज के तैलाक्त गुणधर्मों की पुष्टि करने के लिए
अपना यह ब्लॉग भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली को प्रेषित किया हुआ है।
भारत के ग्रामीण इलाकों में मदार का पौधा प्रकीर्णन
के फलस्वरूप अन्य घास-फूस की भाँति खुद-ब-खुद वृहद स्तर में उग आते हैं। अब हमें
मदार के बीज एवं इसके रेशों का उपयोग एवं अनुप्रयोग सीखना चाहिए । इससे कपास से प्राप्त
होने वाली रूई तथा कपड़े दोनों का आयात भारत के द्वारा कम किया जाएंगा बल्कि हम इन सब
का निर्यात करने में सक्षम हो सकेंगे। मदार के रेशे या कहें की मदार से प्राप्त होने
वाली रूई भारत के कुटीर उद्योगों के लिए बेहतर भविष्य रखती है।
Make in India
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मदार का फल |
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मदार का सफ़ेद नीला फूल |
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उड़ान भरते बीज |
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पारम्परिक जगमगाता दीप |